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इश्क़ पर शेर

इश्क़ पर ये शायरी आपके

लिए एक सबक़ की तरह है, आप इस से इश्क़ में जीने के आदाब भी सीखेंगे और हिज्र-ओ-विसाल को गुज़ारने के तरीक़े भी. ये पहला ऐसा ख़ूबसूरत काव्य-संग्रह है जिसमें इश्क़ के हर रंग, हर भाव और हर एहसास को अभिव्यक्त करने वाले शेरों को जमा किया गया है.आप इन्हें पढ़िए और इश्क़ करने वालों के बीच साझा कीजिए.

भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले

कभी हमारे क़दम बढ़े कभी तुम्हारी झिजक गई

बशीर बद्र

ज़िंदगी यूँही बहुत कम है मोहब्बत के लिए

रूठ कर वक़्त गँवाने की ज़रूरत क्या है

अज्ञात

मोहब्बत सुल्ह भी पैकार भी है

ये शाख़-ए-गुल भी है तलवार भी है

जिगर मुरादाबादी

जाने कौन सी मंज़िल पे पहुँचा है प्यार अपना

हम को ए'तिबार अपना उन को ए'तिबार अपना

क़तील शिफ़ाई

इश्क़ के शोले को भड़काओ कि कुछ रात कटे

दिल के अंगारे को दहकाओ कि कुछ रात कटे

मख़दूम मुहिउद्दीन

तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता

तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने

मुनव्वर राना

कफ़न मेरा हटाओ ज़माना देख ले

मैं सो गया हूँ तुम्हारी निशानियाँ ले कर

अज्ञात

इश्क़ है बे-गुदाज़ क्यूँ हुस्न है बे-नियाज़ क्यूँ

मेरी वफ़ा कहाँ गई उन की जफ़ा को क्या हुआ

अब्दुल मजीद सालिक

चाहत के बदले में हम बेच दें अपनी मर्ज़ी तक

कोई मिले तो दिल का गाहक कोई हमें अपनाए तो

अंदलीब शादानी

दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है

जिस तरह साया-ए-दीवार से दीवार जुदा

अहमद फ़राज़

तुम मोहब्बत को खेल कहते हो

हम ने बर्बाद ज़िंदगी कर ली

बशीर बद्र

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है

हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

हसरत मोहानी

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था

वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था

अंजुम रहबर

मज़ा जब था कि मेरे मुँह से सुनते दास्ताँ मेरी

कहाँ से लाएगा क़ासिद दहन मेरा ज़बाँ मेरी

अज्ञात

आतिश-ए-इश्क़ वो जहन्नम है

जिस में फ़िरदौस के नज़ारे हैं

जिगर मुरादाबादी

उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम था

सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

निदा फ़ाज़ली

हम ने अव्वल से पढ़ी है ये किताब आख़िर तक

हम से पूछे कोई होती है मोहब्बत कैसी

अल्ताफ़ हुसैन हाली

मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा

सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए

कृष्ण बिहारी नूर

बहुत मुश्किल ज़मानों में भी हम अहल-ए-मोहब्बत

वफ़ा पर इश्क़ की बुनियाद रखना चाहते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने

बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही मिला

बशीर बद्र

दुनिया के सितम याद अपनी ही वफ़ा याद

अब मुझ को नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद

जिगर मुरादाबादी

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती मिला

अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी मिला

बशीर बद्र

जब मोहब्बत का नाम सुनता हूँ

हाए कितना मलाल होता है

मुईन अहसन जज़्बी

मिरे सलीक़े से मेरी निभी मोहब्बत में

तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया

मीर तक़ी मीर

इश्क़ में कुछ नज़र नहीं आया

जिस तरफ़ देखिए अँधेरा है

नूह नारवी

सीने से लिपटो या गला काटो

हम तुम्हारे हैं दिल तुम्हारा है

लाला माधव राम जौहर

उस ने फिर कर भी देखा मैं उसे देखा किया

दे दिया दिल राह चलते को ये मैं ने क्या किया

लाला माधव राम जौहर

अपनी तबाहियों का मुझे कोई ग़म नहीं

तुम ने किसी के साथ मोहब्बत निभा तो दी

साहिर लुधियानवी

काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात

आप सके आप का पैग़ाम तो आया

शकील बदायूनी

हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही

किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही

मसरूर अनवर

मोहब्बत ज़ुल्फ़ का आसेब जादू है निगाहों का

मोहब्बत फ़ित्ना-ए-महशर बला-ए-ना-गहानी है

ख़ार देहलवी

या दैर है या काबा है या कू-ए-बुताँ है

इश्क़ तिरी फ़ितरत-ए-आज़ाद कहाँ है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

ख़ुद-कुशी जुर्म भी है सब्र की तौहीन भी है

इस लिए इश्क़ में मर मर के जिया जाता है

इबरत सिद्दीक़ी

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो कि याद हो

वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि याद हो

मोमिन ख़ाँ मोमिन

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

क्या कहा इश्क़ जावेदानी है!

आख़िरी बार मिल रही हो क्या

जौन एलिया

इश्क़ वो कार-ए-मुसलसल है कि हम अपने लिए

एक लम्हा भी पस-अंदाज़ नहीं कर सकते

रईस फ़रोग़

उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद

वक़्त कितना क़ीमती है आज कल

शकील बदायूनी

इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम

कुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास

हसरत मोहानी

मोहब्बत और 'माइल' जल्द-बाज़ी क्या क़यामत है

सुकून-ए-दिल बनेगा इज़्तिराब आहिस्ता आहिस्ता

माइल लखनवी

शदीद प्यास थी फिर भी छुआ पानी को

मैं देखता रहा दरिया तिरी रवानी को

शहरयार

इश्क़ से लोग मना करते हैं

जैसे कुछ इख़्तियार है अपना

असर लखनवी

इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही

मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही

मिर्ज़ा ग़ालिब

मैं चाहता हूँ उसे और चाहने के सिवा

मिरे लिए तो कोई और रास्ता भी नहीं

सऊद उस्मानी

इश्क़ से है फ़रोग़-ए-रंग-ए-जहाँ

इब्तिदा हम हैं इंतिहा हैं हम

जलालुद्दीन अकबर

इश्क़ माशूक़ इश्क़ आशिक़ है

यानी अपना ही मुब्तला है इश्क़

मीर तक़ी मीर

जिस क़दर जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर होता गया

इश्क़ ख़ुद तर्क तलब से बे-ख़बर होता गया

क़मर मुरादाबादी

वहशतें इश्क़ और मजबूरी

क्या किसी ख़ास इम्तिहान में हूँ

ख़ुर्शीद रब्बानी

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी

यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

बशीर बद्र

तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार हम ने किया

इस इंतिज़ार में किस किस से प्यार हम ने किया

हफ़ीज़ होशियारपुरी
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