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अख़बार पर 20 बेहतरीन शेर

अख़बार उस खिड़की का काम

करते हैं जिसके द्वारा हम वैश्विक-घटनाओं को देखते हैं, और ऐसा करते हुए अख़बार विश्व का प्रतिबिम्ब भी बन जाता है। यहाँ कुछ शेर प्रस्तुत किए जा रहे हैं जिन में शायर बड़ी कुशलता से अख़बार को रूपक की तरह प्रयोग कर के विश्व घटनाओं, मनुष्यों और अख़बारों एवं पत्रकारिता पर टिप्पणी करता है।

टॉप 20 सीरीज़

खींचो कमानों को तलवार निकालो

जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो

अकबर इलाहाबादी

हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है

कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना

अदा जाफ़री

इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाए

अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी

अनवर मसूद

दस बजे रात को सो जाते हैं ख़बरें सुन कर

आँख खुलती है तो अख़बार तलब करते हैं

शहज़ाद अहमद

इश्क़ अख़बार कब का बंद हुआ

दिल मिरा आख़िरी शुमारा है

फ़रहत एहसास

सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की

आज के दिन कोई अख़बार देखा जाए

मख़मूर सईदी

रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे

सुब्ह के अख़बार में हालात बेहतर हो गए

नुसरत ग्वालियारी

ऐसे मर जाएँ कोई नक़्श छोड़ें अपना

याद दिल में हो अख़बार में तस्वीर हो

ख़लील मामून

अद्ल-गाहें तो दूर की शय हैं

क़त्ल अख़बार तक नहीं पहुँचा

साहिर लुधियानवी

'वसीम' ज़ेहन बनाते हैं तो वही अख़बार

जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते

वसीम बरेलवी

चश्म-ए-जहाँ से हालत-ए-असली छुपी नहीं

अख़बार में जो चाहिए वो छाप दीजिए

अकबर इलाहाबादी

नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ

और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं

गुलज़ार

कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है

हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं

भारत भूषण पन्त

चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है

पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे

शहज़ाद अहमद

अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी

अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते

महबूब ख़िज़ां

कुछ हर्फ़ सुख़न पहले तो अख़बार में आया

फिर इश्क़ मिरा कूचा बाज़ार में आया

इरफ़ान सिद्दीक़ी

रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में

अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए

मोहम्मद अल्वी

अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं

मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें

आशुफ़्ता चंगेज़ी

तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या

मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ

शोएब निज़ाम

खुलेगा उन पे जो बैनस्सुतूर पढ़ते हैं

वो हर्फ़ हर्फ़ जो अख़बार में नहीं आता

रऊफ़ ख़ैर

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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