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दोस्त / दोस्ती पर 20 मशहूर शेर

शायरी, या ये कहा जाए

कि अच्छा तख़्लीक़ी अदब हम को हमारे आम तजर्बात और तसव्वुरात से अलग एक नई दुनिया में ले जाता है वह हमें रोज़ मर्रा की ज़िंदगी से अलग होते हैं। क्या आप दोस्त और दोस्ती के बारे में उन बातों से वाक़िफ़ है जिन को ये शायरी मौज़ू बनाती है? दोस्त, उस की फ़ित्रत उस के जज़्बात और इरादों का ये शेरी बयानिया आप के लिए हैरानी का बाइस होगा। इसे पढ़िए और अपने आस पास फैले हुए दोस्तों को नए सिरे से देखना शुरू कीजिए।

टॉप 20 सीरीज़

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'

दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

अहमद फ़राज़

ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह

कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता

मिर्ज़ा ग़ालिब

कौन रोता है किसी और की ख़ातिर दोस्त

सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया

साहिर लुधियानवी

दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद

महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी

नासिर काज़मी

वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का

जो पिछली रात से याद रहा है

नासिर काज़मी

इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ

क्यूँ दोस्त हम जुदा हो जाएँ

अहमद फ़राज़

शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ

कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ

वसीम बरेलवी

दुश्मनों से प्यार होता जाएगा

दोस्तों को आज़माते जाइए

ख़ुमार बाराबंकवी

दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं

दोस्तों की मेहरबानी चाहिए

अब्दुल हमीद अदम

दोस्ती आम है लेकिन दोस्त

दोस्त मिलता है बड़ी मुश्किल से

हफ़ीज़ होशियारपुरी

दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब

मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं

हफ़ीज़ जालंधरी

कि तुझ बिन इस तरह दोस्त घबराता हूँ मैं

जैसे हर शय में किसी शय की कमी पाता हूँ मैं

जिगर मुरादाबादी

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

तू दोस्त है तो नसीहत कर ख़ुदा के लिए

शाज़ तमकनत

इसी शहर में कई साल से मिरे कुछ क़रीबी अज़ीज़ हैं

उन्हें मेरी कोई ख़बर नहीं मुझे उन का कोई पता नहीं

बशीर बद्र

ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है

हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो

मिर्ज़ा ग़ालिब

दुश्मनों की जफ़ा का ख़ौफ़ नहीं

दोस्तों की वफ़ा से डरते हैं

हफ़ीज़ बनारसी

ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी

दोस्त की दोस्त मान लेते हैं

दाग़ देहलवी

ज़िंदगी के उदास लम्हों में

बेवफ़ा दोस्त याद आते हैं

अज्ञात

इज़हार-ए-इश्क़ उस से करना था 'शेफ़्ता'

ये क्या किया कि दोस्त को दुश्मन बना दिया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

हमें भी पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी

हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया

हरी चंद अख़्तर

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