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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

रद करें डाउनलोड शेर

अब्र पर शेर

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

इस के ब'अद आए जो अज़ाब आए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें

कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है

क़तील शिफ़ाई

ये एक अब्र का टुकड़ा कहाँ कहाँ बरसे

तमाम दश्त ही प्यासा दिखाई देता है

शकेब जलाली

गो बरसती नहीं सदा आँखें

अब्र तो बारा मास होता है

गुलज़ार

अब्र बरसे तो इनायत उस की

शाख़ तो सिर्फ़ दुआ करती है

परवीन शाकिर

फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं

हवा कहती है मुझ से ये तमाशा कैसा लगता है

अब्दुल हमीद

सब्ज़ा गुल कहाँ से आए हैं

अब्र क्या चीज़ है हवा क्या है

मिर्ज़ा ग़ालिब

बरसात का मज़ा तिरे गेसू दिखा गए

अक्स आसमान पर जो पड़ा अब्र छा गए

लाला माधव राम जौहर

हम ने बरसात के मौसम में जो चाही तौबा

अब्र इस ज़ोर से गरजा कि इलाही तौबा

अज्ञात

या अब्र-ए-करम बन के बरस ख़ुश्क ज़मीं पर

या प्यास के सहरा में मुझे जीना सिखा दे

वज़ीर आग़ा

उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं

लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया

एहसान दानिश

अब्र की तीरगी में हम को तो

सूझता कुछ नहीं सिवाए शराब

मीर मेहदी मजरूह

दुआएँ माँगी हैं साक़ी ने खोल कर ज़ुल्फ़ें

बसान-ए-दस्त-ए-करम अब्र-ए-दजला-बार बरस

मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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