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उम्मीद पर शेर

उम्मीद में जीवन की आस

हमारी इच्छा और आकांक्षा सब शामिल हैं । उम्मीद असल में जीवन को सहारा देने वाली और आगे बढ़ाने वाली अवस्था का नाम है । एक ऐसी अवस्था जो धुंद की तरह होती है उसमें कुछ साफ़ दिखाई नहीं देता लेकिन रौशनी का धोका रहता है । जिस तरह हाथ से सब कुछ निकल जाने के बाद भी एक उम्मीद हमें ज़िंदा रखती है ठीक उसी तरह प्रेमी के लिए भी उम्मीद किसी संपत्ति से कम नहीं । प्रेमी उम्मीद के सहारे ही ज़िंदा रहता है और तमाम दुखों के बावजूद उसे उम्मीद रहती है कि उसका प्रेम उसको मिल कर रहेगा । यहाँ उम्मीद से संबंधित चुनिंदा शायरी को पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि ये मुश्किल वक़्तों में हौसला देने वाली शायरी भी है ।

मैं अब किसी की भी उम्मीद तोड़ सकता हूँ

मुझे किसी पे भी अब कोई ए'तिबार नहीं

जव्वाद शैख़

कुछ कटी हिम्मत-ए-सवाल में उम्र

कुछ उमीद-ए-जवाब में गुज़री

फ़ानी बदायुनी

मिरे जुनूँ का नतीजा ज़रूर निकलेगा

इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा

अमीर क़ज़लबाश

तुम कहाँ वस्ल कहाँ वस्ल की उम्मीद कहाँ

दिल के बहकाने को इक बात बना रखी है

आग़ा शाएर क़ज़लबाश

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उमीदें

ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए

अहमद फ़राज़

उमीद-ओ-बीम के मेहवर से हट के देखते हैं

ज़रा सी देर को दुनिया से कट के देखते हैं

इफ़्तिख़ार आरिफ़

इंक़लाब-ए-सुब्ह की कुछ कम नहीं ये भी दलील

पत्थरों को दे रहे हैं आइने खुल कर जवाब

हनीफ़ साजिद

फिर मिरी आस बढ़ा कर मुझे मायूस कर

हासिल-ए-ग़म को ख़ुदा-रा ग़म-ए-हासिल बना

हिमायत अली शाएर

यूँ रात गए किस को सदा देते हैं अक्सर

वो कौन हमारा था जो वापस नहीं आया

क़मर अब्बास क़मर

तर्क-ए-उम्मीद बस की बात नहीं

वर्ना उम्मीद कब बर आई है

फ़ानी बदायुनी

अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी

ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा

शहरयार

कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना

वो क्या करे जिस को कोई उम्मीद नहीं हो

आसी उल्दनी

बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो

बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने

साहिर लुधियानवी

मौजों की सियासत से मायूस हो 'फ़ानी'

गिर्दाब की हर तह में साहिल नज़र आता है

फ़ानी बदायुनी

तिरे वा'दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए

कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए

फ़ना निज़ामी कानपुरी

किस से उम्मीद करें कोई इलाज-ए-दिल की

चारागर भी तो बहुत दर्द का मारा निकला

लुत्फ़ुर्रहमान

रख आँसू से वस्ल की उम्मीद

खारे पानी से दाल गलती नहीं

शेख़ क़ुद्रतुल्लाह क़ुदरत

शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे

ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे

अज्ञात

इतना भी ना-उमीद दिल-ए-कम-नज़र हो

मुमकिन नहीं कि शाम-ए-अलम की सहर हो

नरेश कुमार शाद

ना-उमीदी मौत से कहती है अपना काम कर

आस कहती है ठहर ख़त का जवाब आने को है

फ़ानी बदायुनी

हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद

जो नहीं जानते वफ़ा क्या है

मिर्ज़ा ग़ालिब

मुझ को औरों से कुछ नहीं है काम

तुझ से हर दम उमीद-वारी है

फ़ाएज़ देहलवी

बिछड़ के तुझ से मुझे है उमीद मिलने की

सुना है रूह को आना है फिर बदन की तरफ़

नज़्म तबातबाई

पूरी होती हैं तसव्वुर में उमीदें क्या क्या

दिल में सब कुछ है मगर पेश-ए-नज़र कुछ भी नहीं

लाला माधव राम जौहर

वो उम्मीद क्या जिस की हो इंतिहा

वो व'अदा नहीं जो वफ़ा हो गया

अल्ताफ़ हुसैन हाली

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है

आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

शकील बदायूनी

कोई वा'दा कोई यक़ीं कोई उमीद

मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था

फ़िराक़ गोरखपुरी

दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है

लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन तो हो जाती

वा'दा वफ़ा करते वा'दा तो किया होता

चराग़ हसन हसरत

नई नस्लों के हाथों में भी ताबिंदा रहेगा

मैं मिल जाऊँगा मिट्टी में क़लम ज़िंदा रहेगा

आलोक यादव

खेत जल-थल कर दिए सैलाब ने

मर गए अरमान सब दहक़ान के

अफ़ज़ल हज़ारवी

झूटे वादों पर थी अपनी ज़िंदगी

अब तो वो भी आसरा जाता रहा

मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

इतने मायूस तो हालात नहीं

लोग किस वास्ते घबराए हैं

जाँ निसार अख़्तर

आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू

इक तिरा ज़िक्र था और बीच में क्या क्या निकला

सरवर आलम राज़

आसार-ए-रिहाई हैं ये दिल बोल रहा है

सय्याद सितमगर मिरे पर खोल रहा है

असद अली ख़ान क़लक़

इसी उम्मीद पर तो जी रहे हैं हिज्र के मारे

कभी तो रुख़ से उट्ठेगी नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

हाशिम अली ख़ाँ दिलाज़ाक

साया है कम खजूर के ऊँचे दरख़्त का

उम्मीद बाँधिए बड़े आदमी के साथ

कैफ़ भोपाली

एक चराग़ और एक किताब और एक उम्मीद असासा

उस के बा'द तो जो कुछ है वो सब अफ़्साना है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते

जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे

इमरान-उल-हक़ चौहान

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो

निदा फ़ाज़ली

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