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रद करें डाउनलोड शेर

रुस्वाई पर शेर

रुसवाई और बदनामी का

डर तो समाज की कल्पना के साथ ही पैदा हुआ होगा लेकिन रुसवाई को गर्व के साथ बयान करने का चलन शायद उर्दू शायरी ने आ’म किया। ख़ास तौर से अगर यह रुसवाई इश्क़ का इनआम हो। क्लासीकी शायरी में इसे इतने अलग-अलग ढंग से बरता गया है कि देखते ही बनती है। पेश है रुसवाई शायरी का यह दिलकश अन्दाज़ः

कौन मस्लूब हुआ हुस्न का किरदार कि हम

शोहरत-ए-इश्क़ में बदनाम हुआ यार कि हम

मसूद क़ुरैशी

क्या मिला तुम को मिरे इश्क़ का चर्चा कर के

तुम भी रुस्वा हुए आख़िर मुझे रुस्वा कर के

अज्ञात

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी

लोग बे-वज्ह उदासी का सबब पूछेंगे

कफ़ील आज़र अमरोहवी

मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रुस्वाई कहूँ

मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़्साने गए

ख़ातिर ग़ज़नवी

कोई तोहमत हो मिरे नाम चली आती है

जैसे बाज़ार में हर घर से गली आती है

अंजुम ख़याली

हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम

मगर हम तो तमाशा हो गए हैं

अतहर नफ़ीस

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं

सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी

गुलज़ार

किस क़दर बद-नामियाँ हैं मेरे साथ

क्या बताऊँ किस क़दर तन्हा हूँ मैं

अनवर शऊर

मेरी रुस्वाई अगर साथ देती मेरा

यूँ सर-ए-बज़्म मैं इज़्ज़त से निकलता कैसे

अख्तर शुमार

ज़रा सी देर को उस ने पलट के देखा था

ज़रा सी बात का चर्चा कहाँ कहाँ हुआ है

ख़ुर्शीद रब्बानी

दफ़अतन तर्क-ए-तअल्लुक़ में भी रुस्वाई है

उलझे दामन को छुड़ाते नहीं झटका दे कर

आरज़ू लखनवी

मेरी शोहरत के पीछे है

हाथ बहुत रुस्वाई का

प्रेम भण्डारी

कैसे कह दूँ कि मुझे छोड़ दिया है उस ने

बात तो सच है मगर बात है रुस्वाई की

परवीन शाकिर

वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे

गली गली मिरी रुस्वाइयों का साथी हो

इफ़्तिख़ार आरिफ़

तंग गया हूँ वुस्अत-ए-मफ़हूम-ए-इश्क़ से

निकला जो हर्फ़ मुँह से वो अफ़्साना हो गया

अहसन मारहरवी

अहल-ए-हवस तो ख़ैर हवस में हुए ज़लील

वो भी हुए ख़राब, मोहब्बत जिन्हों ने की

अहमद मुश्ताक़

उस घर की बदौलत मिरे शेरों को है शोहरत

वो घर कि जो इस शहर में बदनाम बहुत है

मज़हर इमाम

जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा

किसी की आँख में आँसू किसी के दामन में

सालिक लखनवी

इश्क़ जब तक कर चुके रुस्वा

आदमी काम का नहीं होता

जिगर मुरादाबादी

देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के

आग़ाज़ भी रुस्वाई अंजाम भी रुस्वाई

सूफ़ी तबस्सुम

'क़मर' ज़रा भी नहीं तुम को ख़ौफ़-ए-रुस्वाई

चले हो चाँदनी शब में उन्हें बुलाने को

क़मर जलालवी

घर से उस का भी निकलना हो गया आख़िर मुहाल

मेरी रुस्वाई से शोहरत कू-ब-कू उस की भी थी

ज़ुहूर नज़र

प्यार करने भी पाया था कि रुस्वाई मिली

जुर्म से पहले ही मुझ को संग-ए-ख़म्याज़ा लगा

इक़बाल साजिद

जिस जगह बैठे मिरा चर्चा किया

ख़ुद हुए रुस्वा मुझे रुस्वा किया

दाग़ देहलवी

कहिए जो झूट तो हम होते हैं कह के रुस्वा

सच कहिए तो ज़माना यारो नहीं है सच का

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर

आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर

असअ'द बदायुनी

किसी की शख़्सियत मजरूह कर दी

ज़माने भर में शोहरत हो रही है

अहमद अशफ़ाक़

वो जुनूँ को बढ़ाए जाएँगे

उन की शोहरत है मेरी रुस्वाई

सलीम अहमद

सारी रुस्वाई ज़माने की गवारा कर के

ज़िंदगी जीते हैं कुछ लोग ख़सारा कर के

हाशिम रज़ा जलालपुरी

सर फोड़ के मर जाएँगे बदनाम करेंगे

जिस काम से डरते हो वही काम करेंगे

लाला माधव राम जौहर

हम तालिब-ए-शोहरत हैं हमें नंग से क्या काम

बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम होगा

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

लोग कहते हैं कि बद-नामी से बचना चाहिए

कह दो बे इस के जवानी का मज़ा मिलता नहीं

अकबर इलाहाबादी

हर-चंद तुझे सब्र नहीं दर्द व-लेकिन

इतना भी मिलियो कि वो बदनाम बहुत हो

ख़्वाजा मीर दर्द

निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन

बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले

मिर्ज़ा ग़ालिब

चाह की चितवन मेरी आँख उस की शरमाई हुई

ताड़ ली मज्लिस में सब ने सख़्त रुस्वाई हुई

जुरअत क़लंदर बख़्श

मुझे मुस्कुरा मुस्कुरा कर देखो

मिरे साथ तुम भी हो रुस्वाइयों में

कैफ़ भोपाली

फिरते हैं 'मीर' ख़्वार कोई पूछता नहीं

इस आशिक़ी में इज़्ज़त-ए-सादात भी गई

मीर तक़ी मीर

अज़िय्यत मुसीबत मलामत बलाएँ

तिरे इश्क़ में हम ने क्या क्या देखा

ख़्वाजा मीर दर्द

अब तू दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतार

लफ़्ज़ नंगे हो गए शोहरत भी गाली हो गई

इक़बाल साजिद

अपनी रुस्वाई तिरे नाम का चर्चा देखूँ

इक ज़रा शेर कहूँ और मैं क्या क्या देखूँ

परवीन शाकिर

अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है

उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते

राहत इंदौरी

तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले

जिस लिए आए थे हम कर चले

ख़्वाजा मीर दर्द

सारी दुनिया हमें पहचानती है

कोई हम सा भी तन्हा होगा

अहमद नदीम क़ासमी

दुख दे या रुस्वाई दे

ग़म को मिरे गहराई दे

सलीम अहमद

इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवा

'दिल' ये इश्क़ ले के किधर गया तुझे

दिल अय्यूबी

रंज-ओ-ग़म दर्द-ओ-अलम ज़िल्लत-ओ-रुसवाई है

हम ने ये दिल के लगाने की सज़ा पाई है

फ़िदा कड़वी

तुम को हज़ार शर्म सही मुझ को लाख ज़ब्त

उल्फ़त वो राज़ है कि छुपाया जाएगा

अल्ताफ़ हुसैन हाली

रुस्वा हुए ज़लील हुए दर-ब-दर हुए

हक़ बात लब पे आई तो हम बे-हुनर हुए

खलील तनवीर

ख़ैर बदनाम तो पहले भी बहुत थे लेकिन

तुझ से मिलना था कि पर लग गए रुस्वाई को

अहमद मुश्ताक़

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है

दूसरी औरत पहली जैसी कब होती है

फ़े सीन एजाज़

Jashn-e-Rekhta | 8-9-10 December 2023 - Major Dhyan Chand National Stadium, Near India Gate - New Delhi

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